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लेखनी प्रतियोगिता -26-May-2022

मैं यहां हूँ तुम कहाँ हो


रात का सागर है फैला
चांद बैठा है अकेला
कुमुदिनी से शांत मन को
चांदनी करती है मैला।
मैं तुम्हें कैसे जताऊं
ये व्यथा कैसे बताऊँ
बादलों के हाथ से कोई
पत्र भेजूं तुम जहां हो।
मैं यहाँ हूँ तुम कहाँ हो।

मन मे कुछ जज्बात भी हैं
कहने को कुछ बात भी हैं
चांदनी, जुगनू, हवाएं
और समर्पित रात भी है
बिन तुम्हारे शून्य है सब
ये बता दो आओगे कब
मन लता पल्लवित होगी
देख लुंगी मैं तुम्हें जब।
सूख जाएंगे सब आंसू
जब तुम्हारा सामना हो
मैं यहाँ हूँ तुम कहाँ हो।



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18 Comments

Shnaya

28-May-2022 12:45 PM

बेहतरीन

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Reyaan

27-May-2022 11:57 PM

बहुत खूब

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Chirag chirag

27-May-2022 05:32 PM

Nice

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Anshumandwivedi426

27-May-2022 07:44 PM

Thanks

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